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   pearl millet farming/bajra ki kheti

 बाजरा की जैविक खेती  

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बाजरा की जैविक खेती का परिचय

बाजरा दुनिया में व्यापक तौर पर उगाया जाता है यह फसल सूखे को सहन नहीं कर सकती इसलिए ऐसे क्षेत्र में जहां थोड़ी बारिश होती हो वहां स्पेशल की खेती हो सकती है pearl millet farming भारत बाजरे का सबसे बड़ा उत्पादक है यह चारे के लिए प्रयोग किया जाता है इसके तने का प्रयोग जानवरों के चारे के रूप में किया जाता है भारत में बाजरे का उत्पादन करने वाले क्षेत्र पंजाब राजस्थान महाराष्ट्र गुजरात उत्तर प्रदेश हरियाणा मध्य प्रदेश कर्नाटक आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु बाजरा मोटेअनाजों में एक मुख्य फसल है भारत दुनिया का घनी बाजरा उत्पादक देश है यह मुख्यतः खरीफ फसल में उगाया जाता है

बाजरे का इतिहास

प्रोसो बाजरा (पेनीकम मिलिया सिम) एक प्रकार का बाजरा है जो अपने अनाज के लिए उगाया जाता है और दुनिया के कुछ हिस्सों में यह मुख्य भोजन है यह यूरेशिया का मूल निवासी है और चीन भारत और पूर्वी यूरोप में इसकी खेती का एक लंबा इतिहास है यह प्राकृतिक रूप से ग्लूटेन मुक्त भी है जो इसे सिलीएक रोग या ग्लूटेन असहिष्णुता वाले व्यक्तियों के लिए उपयुक्त विकल्प बनता है रूसो बाजार को विभिन्न तरीकों से पकाया और खाया जा सकता है इसे चावल की तरह पकाया और खाया जा सकता है इसमें सुखा एवं अधिक गर्मी को सहन करने की क्षमता होती है यह संचित और असंचित दोनों क्षेत्रों में उगाया जा सकता है असंचित क्षेत्र में इसका क्षेत्रफल वर्ष के समय से होने के अनुसार घटता बढ़ता रहता है यह कम समय में पकने वाली फसल है तथा pearl millet farmingउत्पादन लागत कम होने के कारण प्रयाग कम आय वाले कृषकों द्वारा उगाया जाता है

स्वास्थ्य में लाभकारी जैविक बाजरे

बाजरा की रोटी खाने से एनर्जी मिलती है यह ऊर्जा एक बहुत अच्छा स्रोत है इसके अलावा अगर आप वजन घटाना चाहते हैं तो भी बाजरा की रोटी खाना आपके लिए फायदेमंद होगा सर्दी के दिनों में बाजरा की रोटी सेवन करने से शरीर में अंदरूनी गर्माहट बनाए रखने के लिए बेहद फायदेमंद होता है यही कारण है कि ज्यादातर लोग ठंड के मौसम में बाजरे की रोटी एवं मां व्यंजन खाना पसंद करते हैं बाजरे में टाइप तू फैन अमीनो एसिड पाया जाता है जो भूख को काम करता है बाजरे की रोटी सुबह के नाश्ते में करने से लंबे समय तक भूख नहीं लगती और पेट में भी भरा रहता है पोषण सुरक्षा बाजरे में हरयुक्त फाइबर भरपूर मात्रा में विद्वान होता है इस पोशाक अनाज को लोहा फोले कैल्शियम जस्ता मैग्नीशियम फास्फोरस तांबा विटामिन ए एंटी एक्सीडेंट शहर अन्य कई पोषक तत्व प्रचलित मात्रा में होते हैं एक पोषक तत्व न केवल बच्चों के स्वास्थ्य विकास के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि वयस्कों मैं हृदय रोग और मधुमेह के जोक हमको काम करने में भी सहायक होते हैं ग्लूटेन फ्री ग्लिसमिक इंडेक्स की कमी से युक्त बाजार डायबिटिक मधुमेह के पीड़ित व्यक्तियों के लिए एक उचित खाद्य पदार्थ है साथ ही यह हृदय संबंधी बीमारियों और पोषण संबंधी दिमाग की बीमारियों से निपटने में मदद कर सकता है

जलवायु एवं मिट्टी 

बाजरा की फसल अच्छी जल निकास वाली सभी तरह भूमि में ली जा सकती है परंतु हल्की एवं दोमट मिट्टी इसके लिए सर्वोत्तम है इसके लिए अधिक उपज भूमि की आवश्यकता नहीं होती pearl millet farming बाजरे की खेती गर्म जलवायु तथा कम वर्षा वाले क्षेत्र में की जा सकती है 32 से 37 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान उपयुक्त माना गया है

फसल चक्र मिली जुली एवं अंतर फासले

शुष्क सिंचित क्षेत्र में बाजरे को उड़द मूंग तेल के साथ मिलकर मिश्रित खेती की जाती है शंकर बाजरे में मूंगफली रंडी को अंत फसल के रूप में उगने से अतिरिक्त आय प्राप्त होती हैpearl millet farming बाजरे के लिए कुछ उपयोगी फसल चक्र निम्न प्रकार हैं बाजरा एवं गेहूं मूंग उड़द-बाजरा आलू मूंग- बाजरा बाजरा-टोरिया आदि मिश्रित फसल खेती की जा सकती है

बाजरा की उन्नतशील किस्म 

प्रत्येक राज्य में भूमि जलवायु तथा सिंचाई के साधनों के अनुसार अलग-अलग प्रजातियां बोई जाती हैं संचित मैदानी क्षेत्रों में बाजरा की प्रचलित किस्म पूसा कंपोजिट 383 पूसा कंपोजिट 443 पूसा कंपोजिट 701 एच एच बी  46 आदि हैं

राज्य उपयुक्त बाजरा की किस्म

राजस्थान, गुजरात और हरियाणा एमएच 1468, नंद 64, नंद 61, नंद 65, एमएच 1617, एमबीसी 2, एमएच 1421, एमएच 1486, एमएच 1446, एमएसएच 203, एमएच 1617, एचएचबी 226, आरएचबी 177, आरएचबी 173, एमएसएच 203।

पंजाब, दिल्ली, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश एमएच 1468, एमएच 1617, एमएच 1446, पूसा कम्पोजिट 612, नंदी 61, नंदी 65।

तमिलनाडु नंदी 64, एमएच 1578, पीएसी 909, एमएच 1540, एमएच 1541, एमएसएच 203 (ग्रीष्म ऋतु), शाइन, पूसा कम्पोजिट 612, हाइब्रिड कू 9।

आंध्र प्रदेश शाइन, पीएसी 909, एमएच 1540, एमएच 1541, पूसा कम्पोजिट 612।

महाराष्ट्र एबीपीसी 4-3, पीकेवी-राज हाइब्रिड, एमएसएच 203 (ग्रीष्म ऋतु), एमएच 1540, पूसा कम्पोजिट 612।

बाजरा की जैविक खेती के लिए खेत की तैयारी

मानसून की पहली वर्षा होते ही खेत की एक अच्छी जुटा करके बुवाई करें अंकुरण के लिए मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी चाहिए भारी मिट्टी एवं खरपतवार से ग्रस्त खेतों में दो अच्छी जुटाईयों की आवश्यकता होती है बाय के दो तीन सप्ताह पहले मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को ध्यान में रखते हुए प्रति हेक्टेयर 9 से 10 तन अच्छी साड़ी हुई गोबर की खाद डालने और भूमि में अच्छी तरह से मिला दें

बाजरा की जैविक खेती के लिए भूमि उपचार

बाजरा की जैविक खेती के लिए बीजों को एडजेक्टिव वेक्टर और पीएसबी कल्चर से उपचारित करके छाया में सूखने के बाद शीघ्र ही बुवाई करें

 बाजरा की बीज दर एवं बुवाई की विधि

बाजरा की बुवाई का समय किस्म के पकाने की अवधि पर बहुत निर्भर करता है pearl millet farming बाजार की दीर्घ अवधि 80 से 90 दिन में पकने वाली किस्म में बुवाई जुलाई के प्रथम सप्ताह में कर दे मध्यम अवधि 70 से 80 दिन में पकने वाली किस्म की बुवाई 10 जुलाई तक कर दें 65 से 70 दिन में पकने वाली किस्म की बुवाई 20 से 25 जुलाई तक की जा सकती है बाजार की फसल के लिए चार पांच किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है अच्छी उपज के लिए खेत में पौधों की उचित संख्या हो बाजार की बुवाई पंक्तियों में 45 से 50 सेमी की दूरी पर तथा पौधा से पौधा की दूरी 40 से 45 सेंटीमीटर रखें

सिंचाई प्रबंधन

अधिकतर क्षेत्रों में जुलाई के महीने में बारिश शुरू हो जाती है जिससे सिंचाई की समस्या हल हो जाती है फिर भी हमें इसकी सिंचाई का पूरा ध्यान रखना चाहिए खेत में बारिश का पानी निकालने का रास्ता होना चाहिए जिससे खेत में अधिक बारिश होने पर फसल के गलने का खतरा नहीं होगा फसल में फुटन होते समय नमी की उचित मात्रा बनी रहनी चाहिए दाना बनते समय भी हमें इसकी सिंचाई का ध्यान रखना होगा समय-समय पर इसकी इसकी निराई गुड़ाई भी करते रहना चाहिए जिससे घर परिवार की समस्या हल होगी और पैदावार बढ़ेगी इसके लिए तीसरा से चौथा सप्ताह उपयुक्त रहता है

कीट रोग व उसकी रोकथाम

दीमक

 दीमक का प्रकोप लगभग सभी प्रकार की फसलों में होता है यह काम नमी व अधिक तापमान वाली जगह पर अधिक नुकसान पहुंचती है यह पौधों के तनाव और जड़ों को खाकर खोखला कर देती है जिससे पौधा पीला पड़ कर सुख कर गिर जाता है

रोकथाम इसके लिए हमें पर्याप्त सिंचाई करनी चाहिए जिससे नमी बनी रहे और दीमक का प्रकोप कम हो नीम की खली का प्रयोग करना चाहिए इसकी गंध से दीमक दूर भागती है और खेत में डालने वाली गोबर की खाद अच्छी तरीके से सारणी चाहिए क्योंकि कच्ची खाद में दीमक जल्दी लगती है यूकेलिप्टस सफेद की लकड़ी खेत में गढ़ देने से दिमाग सफेद की लकड़ी की तरह भागती है इससे भी हम दिमाग के प्रकोप को कम कर सकते हैं

सफेद लट

यह पौधों में जड़ों को काटकर नुकसान पहुंचती है इसकी रोकथाम के लिए प्रकाश के प्रति आकर्षित होती है जब हम किसी एक जगह प्रकाश की रोशनी कर दे तो जब वह प्रकाश के पास आए तब उसके नीचे पानी में मिट्टी का तेल मिला दें जिससे यह उसमें गिरकर खत्म हो जाती है

हरी वाली रोग

फफूंद जनित यह रोग फसल के बढ़वार के समय शुरू होता है इससे प्रभावित पौधों की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं जिससे पौधों की बघवार रुक जाती है इसकी रोकथाम के लिए रोग ग्रस्त पौधों को खेत से निकाल देवें जिससे दूसरे पौधों में यह रोग ग्रसित ना हो रोग रोधी किस्म जैसे राज 171 HHB 67 की बुवाई करें

अरगट

यह  रोग बाजरा में बाली बनते समय नुकसान पहुंचता है रोकथाम बाजरे का यह रोग जान घास से फैलता है खेत में आसपास अनजान के पौधे को नष्ट कर देवें सामान्य या रोग अगेती फसलों में अधिक पाया जाता है जुलाई के दूसरे सप्ताह में बुवाई करने से इस रोग में कमी देखी जा सकती है और घाट के बचाव हेतु बाजरे के बीज को नमक के 20% गोल में 5 मिनट के लिए डाल देवें जो भी तैरता है उसको निकाल कर दें इसके उपरांत बी को निकाल के सुख कर बुवाई करें

बाजरा की जैविक खेती कटाई एवं गहाई

बाजरा की कटाई का सबसे अच्छा चरण तब होता है जब पौधे शारीरिक अवस्था में पहुंच जाते हैं हेलर क्षेत्र में अनाज के तल पर काले धब्बे द्वारा परिपक्वता निर्धारित की जाती है जब फसल परिपक्व हो जाती है पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और लगभग सूख जाती हैंpearl millet farming बाजरे के दाने कठिन और दृढ़ हो जाते हैं बाजरे की कटाई की सामान्य प्रथा में पहले बालिया काटी जाती हैं और बाद में डंठल डंठल पॉल को एक सप्ताह के बाद काटा जाता है सूखने दिया जाता है और फिर देर लगा दिया जाता है 14% से कम नमी को सुख माना जाता है लंबी अवधि के भंडारण 6 महीने से अधिक के लिए अनाज नमी की मात्रा 12% से कम होनी चाहिए

बाजरा की जैविक खेती से पैदावार

विक फसल लेने वाले खेत में शुरुआती दो-तीन वर्षों तक पैदावार में कमी पाई गई इसके बाद उपजी में धीरे-धीरे बढ़ोतरी पाई गई है pearl millet farmingइसके बाद बाजार की पैदावार 15 से 25 कुंतल प्रति हेक्टर तक ली जा सकती है और जैविक तरीके से उगाई गई फसल का बाजरा में अच्छा रेट भी प्राप्त किया जा सकता है जिससे किसान की आर्थिक स्थिति सुधर सकती है


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