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organic peas farming in Hindi 

हरी मटर की खेती

मटर का उपयोग एक मल्टी अनाज के रूप में किया जाता है । इसके फलियों से निकलने वाले हरे दाने सब्जी के रूप में तथा सूखे दाने का प्रयोग सब्जी,दाल,सूप व मिक्स रोटी के रूप में किया जाता है । उत्तर भारत में हरी मटर की दाल चाट बनाने में भी किया जाता है | हरे मटर के दानों को डिब्बों में परिरक्षित कर लम्बे समय तक उपयोग में लाते हैं  ।


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हरी मटर की खेती के लिए कृषि जलवायु संबंधी आवश्यकताएँ

किस्मों के चयन के अलावा,मटर की खेती के लिए कृषि जलवायु की आवश्यकता भी एक महत्वपूर्ण कारक है जो उपज को सीधे प्रभावित करता है। अतः उपयुक्त जलवायु परिस्थितियों में Organic Peas Farming in Hindi मटर की खेती करने से आपको बेहतर लाभ प्राप्त होगा। इसलिए, इसका ध्यान रखें क्योंकि कृषि जलवायु की स्थिति बुवाई, फसल चक्र आदि का समय तय करती है।

हरी मटर ठंडी और नम जगहों पर सबसे अच्छी तरह पनपती है। अस्थायी रूप से; मटर की खेती के लिए 12 डिग्री सेल्सियस से 28 डिग्री सेल्सियस के बीच का तापमान आदर्श माना जाता है। 28 डिग्री सेल्सियस से ऊपर, आपकी खेती में मटर का खराब उत्पादन हो सकता है। फूल और फली के विकसित होने की अवस्था में मिट्टी में नमी की मात्रा आवश्यक है। मटर के पौधे के अच्छे विकास के लिए 450 मिमी वर्षा आदर्श वर्षा मानी जाती है। 

शुरुआती मौसम की खेती

हरी मटर की खेती में ये अधिक लोकप्रिय किस्में हैं, क्योंकि ये आपको शेष की तुलना में बेहतर आर्थिक लाभ देती हैं। वे आपको मटर की शुरुआती कटाई देंगे लेकिन अधिक मात्रा में मटर का उत्पादन करने में सक्षम नहीं हैं।

मध्य-मौसम की खेती

यदि आप मटर की खेती में हरी मटर की Organic Peas Farming in Hindi उच्च उपज या अधिक उत्पादन की तलाश कर रहे हैं, तो शुरुआती मौसम की खेती के बजाय इस प्रकार की किस्म के लिए जाने की सलाह दी जाती है।

ऐसी किस्मों में, हरे मटर के कम से कम तीन से चार भारी दाने तोड़े जा सकते हैं। पहली बुवाई के लगभग तीन महीने बाद और बाद की दो दो सप्ताह के अंतराल पर।

आमतौर पर, इस प्रकार की किस्म के लिए, 2 से 3 तुड़ाई करें। बुवाई के लगभग दो महीने बाद पहली बार कटाई करें, और दूसरी दो से तीन सप्ताह बाद। ऐसी किस्म के लिए परिपक्वता अवधि दो से तीन महीने होती है।

हरी मटर की किस्में 

किसी भी व्यावसायिक खेती में, Organic Peas Farming in Hindi खेती के लिए चुनी गई किस्में एक प्रमुख कारक है जो उपज की मात्रा तय करती है। संकर के उचित चयन से उत्पादक को अच्छी मात्रा में उपज प्राप्त होती है। हरी मटर में दोनों होते हैं; बेल और कम उगने वाली किस्में। फली की परिपक्वता के आधार पर मटर की तीन किस्में होती हैं; शुरुआती मौसम, मध्य मौसम और देर से पकने वाली किस्में।

आप जलवायु की स्थिति, आपकी मिट्टी की उर्वरता आदि जैसे अन्य कारकों के आधार पर इसकी खेती के लिए किसी भी संकर का चयन कर सकते हैं … यहां इन तीनों प्रकार के शुरुआती मौसम, मध्य मौसम और देर से मौसम की खेती की कुछ प्रसिद्ध किस्मों की सूची दी गई है। इसे देखें।

सब्जी वाली मटर की उन्नत किस्में

 जवाहर मटर 1 व जवाहर मटर 2,अपर्णा मटर,अर्ली दिसंबर,न्यूलाइन परफेक्शन,असौजी,बोनविले,टाइप 19,टाइप 236,टाइप 163,आजाद मटर 1,मिटीओर,मधु,पंत उपहार,पूसा प्रगति,

 मटर की अगेती फसल के लिए बीज किस्में

 KN 5, kn 6,  M 7

 मध्यम अवधि बाली किस्म

 पीएसएम 3 ,एपी 3 ,पी यू 7

 जी एस 10, इटालियन 10

हरी मटर  बीज शोधन

किसी फसल का बीज लगाने से पहले उसका शोधन करना आवश्यक होता है ताकि बीज जनित बीमारियां फसल को प्रभावित ना करें। बीज शोधन सीरम मैनकोज़ेब या कार्बेंडाजिम में से किसी एक दवा की 2 ग्राम मात्रा एक किलोग्राम बीज के शोधन के लिए पर्याप्त रहती है। जैविक फफूंदी नाशक ट्राइकोडरमा 3-4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से डालना चाहिए। उक्त दबाव में से किसी एक को लेकर बीज पर हल्के से पानी के छींटे लगाकर इन दवाओं का हादसे पर लेप जैसा कर दें। इसके बाद ही बीच की खेत में बुवाई करें।

हरी मटर भूमि व जलवायु व बुवाई का समय

इसकी खेती के लिए मटियार दोमट और दोमट भूमि सबसे उपयुक्त होती है। जिसका पीएच मान 6-7.5 होना चाहिए। इसकी खेती के लिए अम्लीय भूमि सब्जी वाली मटर की खेती Organic Peas Farming in Hindiके लिए बिल्कुल उपयुक्त नहीं मानी जाती है। इसकी खेती के लिए अक्टूबर-नवंबर माह का समय उपयुक्त होता है। इस खेती में बीज अंकुरण के लिए औसत 22 डिग्री सेल्सियस की जरूरत होती है, वहीं अच्छे विकास के लिए 10 से 18 डिग्री सेल्सियस तापमान बेहतर होता है।

हरी मटर की खेती में खाद एवं जैविक उर्वरक –

मटर की उन्नतशील प्रजातियों के लिए 40-50 कि.ग्रा. नत्रजन, 50-60 कि.ग्रा. फॉस्फोरस, 50-60 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टे. की आवश्यकता होती है। इनकी पूर्ति हेतु खेत की तैयारी के समय 50-60 कि्ंव. सड़ी गोबर की खाद अथवा 20-25 कि्ंव. कम्पोस्ट या वर्मी कम्पोस्ट प्रति हेक्टे. की दर से अच्छी तरह मिट्टी में मिलाएं। फफूंद रोगों से बचाव हेतु गोबर की खाद में 3.4 कि.ग्रा. ट्राइकोडर्मा मिलाकर प्रयोग करें। जैव उर्वरक (राइजोबियम, पी.एस.बी.) 3-4 कि.ग्रा. प्रति हेक्टे. की दर से 200 कि.ग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर पूरक खाद के रूप में भूमि में प्रयोग करें। पहली निकाई.गुडा़ई के समय रोपित पौधों में वर्मी कम्पास्ट का बुरकाव करें। सिंचाई के साथ जीवामृत घेल 300-400 लीटर घोल का प्रयोग करें

हरी मटर की खेती बुवाई की विधि:

किसान भाई मटर की बुवाई देशी हल से अथवा Organic Peas Farming in Hindi सीडड्रिल की मदद से मेड से 20 से 30 सेंटीमीटर अंतराल पर कतारों में तथा पौधे से पौधे के मध्य दूरी 4 से 5 सेंटीमीटर की दूरी पर करें,मटर की सघन बुवाई करने से अनावश्यक खरपतवारों को उगने के लिए स्थान कम मिलता है जिससे फसल की उपज बढ़ जाती है |

हरी मटर की खेती में रोग प्रबंधन –

उक्टा एवंज जड़ गलन रोग. फफूंदी तथा जीवाणु जनित रोग हैं तथा पौधे की जडों को प्रभावित करके पौधों को नष्ट कर देता है। इसके प्रबंधन हेतु रोगरोधी किस्मों का चुनाव, गर्मी की गहरी जुताई, फसल चक्र, फसल अवशेष नष्ट करना, बीज, पौध एवंभूमि का जैव फफूंदनाशकों द्वारा शोधन एवंभूमि में नीम की खली का प्रयोग करना चहिए।

चूर्ण आसिता (पाउडरी मिल्डयू). इसके प्रकोप से पत्तियों तने तथा फलों पर सफेद चूर्ण दिखाई देता है तथा पीले पील होकर कमजोर हो जाते हैं। फलियां कम बनती हैं तथा दाने का आकार घट जाता है। इसकी रोकथाम हेतु रोगरोधी किस्मों तथा अगेती किस्मों का चुनाव करें, फसल चक्र अपानएं, रोगी पौधों को नष्ट कर दें तथा नीम के काढ़े एवं गऊ.मूत्र का मिश्रण तैयार करके छिड़काव करें।

सुरंगी कीट (लीफ माइनर)-

इसकी मादा सुण्डी पत्ती की ऊपरी व निचली सतह के बीच अण्डे देती है। सुण्डिया पत्ते के हरे भाग को खाकर सुरंगों का जाल बिछा देती हैं। इसकी रोकथाम हेतु परिपोषित पौधों तथा कीट से प्रभावित पत्तियों के तोड़ कर नष्ट कर देना चाहिए। निमोली सत 5 प्रतिषत या अग्निअस्त्र 3 प्रतिषत घोल का छिड़काव करने से इनका नियंत्रण किया जा सकता है।

चेपा/माहू –

यह रस चूसने वाला हानिकारक कीट हैं। जो पत्तियों व पौधों से रस चूसकर उसको कमजोर कर देता है।

प्रबंधन.खरपतवार एवं परिपोषी पौधों को नष्ट करना, पीले चिप.चिपे (येलो स्टीकी) ट्रैप लगाना, निमोली सत 5 प्रतिशत या नीम तेल 3 प्रतिशत या छाछ तथा गौमूत्र (1 ली./12.15 ली. पानी) का छिड़काव।

फलियों की तुड़ाई

मटर के पौधों में 40-45 दिन बाद फली आने लगती हैं, इसके 10-15 दिन बाद फलियों में दाना भरने पर इनकी तुड़ाई कर लेनी चाहिए। 8-10 दिन के अन्तर पर तुड़ाई करें। खेत से मटर तोड़ने के पश्चात रोग ग्रस्त, सडे.गले आदि फलियों को छांटकर अलग कर दें तथा आकार के अनुसार ग्रेडिंग करें। बाजार में भेजने के लिए फलों को साफ करके लकड़ी के क्रेट्स का उपयोग करना लाभदायक व सुविधाजनक रहता है।

उपसंहार

हरी मटर की खेती के बारे में Organic Peas Farming in Hindiआपको जानकारी दी गई है सब्जी के लिए यह खेती फायदे की है जिसकी ऑर्गेनिक तरीके से देखभाल करके अच्छी उपज कमाई जा सकती है जिससे किसानों की वार्षिक हालात सुधर सकती है मटर कीऑर्गेनिक खेती के विषय में संपूर्ण जानकारी आपको दी गई है अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी हो तो इस लेख को लाइक करें एवं और किसानों को जानकारी के लिए सोशल मीडिया पर शेयर करें ताकि और भी किसान इसका लाभ उठा सके हरे मटर की खेती से संबंधित आपके जो भी प्रश्न हैं कमेंट बॉक्स में लिखे आपके सुझाव की प्रतीक्षा है

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