organic-mustard-farming/ सरसों की खेती

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सरसों की खेती 

सरसों का भारतीय अर्थव्यवस्था में एक विशेष स्थान है। देश की तेल वाली फसलों के कुल उत्पादन में सरसों का योगदान 27 प्रतिशत है।organic-mustard-farming-in-India,सरसों रबी मौसम में उगाए जाने वाली मुख्य फसल है। इसकी खेती सिंचित एवं संरक्षित नमी वाले बारानी क्षेत्रों में की जाती है। कृषि वैज्ञानिकों एवं किसानों के लगातार प्रयासों से सरसों के उत्पादन में लगातार बढ़ोत्तरी हुई है। यह फसल कम लागत और कम सिंचाई की सुविधा में भी अन्य फसलों की तुलना में अधिक लाभ देती है। इसको अकेले या सहफसली खेती के रूप में भी बोया जा सकता है। इसकी खेती सीमित सिंचाई की दशा में अधिक लाभदायक होती है।

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सरसों की खेती की उन्नत तकनीक

कीट प्रबन्धन: सरसों की खेती में कीटों का प्रकोप पूरे देश में पाया जाता है।organic-mustard-farming-in-India, सरसों की पैदावार को घटाने में कीटों की बड़ी भूमिका होती है। मेरठ स्थित सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों के अनुसार, कीटों और बीमारियों से रबी की तिलहनी फसलों को सालाना 15-20 प्रतिशत तक नुकसान पहुँचाता है। इससे किसान बहुत हतोत्साहित होते हैं। बेमौसम की बारिश से बढ़ने वाली नमी और धूप के कमी की वजह से सरसों की फसल में लगने वाले कीट तेज़ी से फैलते हैं। कभी-कभार ये कीट उग्र रूप धारण कर लेते हैं तथा फसलों को अत्याधिक हानि पहुँचाते हैं। इसीलिए सरसों या तिलहनी फसलों को कीटों और बीमारियों से बचाना बेहद ज़रूरी है।

सरसों की खेती फसल चक्र:

 खरपतवार के टिकाऊ उपचार में फसल चक्र अपनाने से बहुत फ़ायदा होता है organic-mustard-farming-in-India, फसल चक्र का अधिक पैदावार प्राप्त करने, मिट्टी का उपजाऊपन बनाये रखने तथा बीमारियों और कीट से रोकथाम में भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। मूँग-सरसों, ग्वार-सरसों, बाजरा-सरसों जैसे एक वर्षीय फसल चक्र तथा बाजरा-सरसों-मूँग/ग्वार-सरसों का दो वर्षीय फसल चक्र में उपयोग करना बेहद लाभकारी साबित होता है। बारानी इलाकों में जहाँ सिर्फ़ रबी में फसल ली जाती हो वहाँ सरसों के बाद चना उगाया जा सकता है।

सरसों की उन्नत खेती के लिए मिट्टी और खेत की तैयारी

सरसों की खेती के लिए दोमट और बलुई मिट्टी सबसे बढ़िया होती है। इसे भुरभुरी होना चाहिए, क्योंकि ऐसी मिट्टी में ही सरसों के छोटे-छोटे बीजों का जमाव अच्छा होता है। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए इसके बाद हैरो से एक क्रास जुताई और फिर कल्टीवेटर से जुताई करके पाटा लगाना चाहिए।

समय पर बुआई वाली सिंचित क्षेत्र की किस्में

किस्में पकाव अवधि (दिन) उपज (कि.ग्रा. / हक्टे.) तेल (प्रतिशत) पैदावार के लिए उपयुक्त क्षेत्र

पूसा बोल्ड 110-140 2000-2500 40 राजस्थान, गुजरात, दिल्ली, महाराष्ट्र

पूसा जयकिसान (बायो 902) 155-135 2500-3500 40 गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान

क्रान्ति 125-135 1100-2135 42 हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान

आर एच 30 130-135 1600-2200 39 हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी राजस्थान

आर एल एम 619 140-145 1340-1900 42 गुजरात, हरियाणा, जम्मू व कश्मीर, राजस्थान

पूसा विजय 135-154 1890-2715 38 दिल्ली

पूसा मस्टर्ड 21 137-152 1800-2100 37 पंजाब, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश

पूसा मस्टर्ड 22 138-148 1674-2528 36 पंजाब, हरियाणा, राजस्थान

असिंचिंत क्षेत्र के लिए किस्में

किस्में पकाव अवधि (दिन) उपज (कि.ग्रा./है.) तेल (प्रतिशत) पैदावार के लिए उपयुक्त क्षेत्र

अरावली 130-135 1200-1500 42 राजस्थान, हरियाणा

गीता 145-150 1700-1800 40 पंजाब, हरियाणा, राजस्थान

आर जी एन 48 138-157 1600-2000 40 पंजाब, हरियाणा, राजस्थान

आर बी 50 141-152 846-2425 40 दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, जम्मू व कश्मीर

पूसा बहार 108-110 1000-1200 42 असम, बिहार, उडीसा, पश्चिम बंगाल

सरसों के बीज की बुआई

सरसों के लिए 4 से 5 किलो ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहता है। बारानी इलाकों में सरसों की बुआई 25 सितम्बर से 15 अक्टूबर तथा सिचिंत खेतों में 10 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच करनी चाहिए। फसल की बुआई पंक्तियों में करनी चाहिए। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 से 50 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। सिचिंत क्षेत्रों में फसल की बुआई पलेवा देकर करनी चाहिए।

सरसों की खेती जल प्रबंधन

सरसों की अच्छी फसल के लिए पहली सिंचाई खेत की नमी, फसल की जाति और मृदा प्रकार को देखते हुए 30 से 40 दिन के बीच फूल बनने की अवस्था पर ही करनी चाहिए। दूसरी सिंचाई फलियां बनते समय (60-70 दिन) करना लाभदायक होता है। जहाँ पानी की कमी हो या खारा पानी हो वहाँ सिपर्फ एक ही सिंचाई करना अच्छा रहता है। बारानी क्षेत्रों में सरसों की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए मानसून के दौरान खेत की अच्छी तरह दो-तीन बार जुताई करें एवं गोबर की खाद का प्रयोग करें जिससे मृदा की जल धरण क्षमता में वृद्धि होती है। वाष्पीकरण द्वारा नमी का ह्रास रोकने के लिए अन्तः सस्य क्रियायें करें एवं मृदा सतह पर जलवार का प्रयोग करें।

सरसों की खेती खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार फसल के साथ जल, पोषक तत्वों, स्थान एवं प्रकाश के लिए प्रतिस्पर्ध करते हैं। organic-mustard-farming-in-India,खरपतवारों को खेत से निकालने और नमी संरक्षण के लिए बुआई के 25 से 30 दिन बाद निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। खरपतवारों के कारण सरसों की उपज में 60 प्रतिशत तक की कमी आ जाती है। खरपतवार नियंत्रण के लिए खुरपी एवं हैण्ड हो का प्रयोग किया जाता है। 

सरसों की खेती कीट एवं रोग प्रबंधन

सरसों की उपज को बढाने तथा उसे टिकाउफ बनाने के मार्ग में नाशक जीवों और रोगों का प्रकोप एक प्रमुख समस्या है। इस फसल को कीटों एवं रोगों से काफी नुकसान पहुंचता है जिससे इसकी उपज में काफी कमी हो जाती है। यदि समय रहते इन रोगों एवं कीटों का नियंत्रण कर लिया जाये तो सरसों के उत्पादन में बढ़ोत्तरी की जा सकती है। 

सरसों के प्रमुख कीट

चेंपा या माहूः

सरसों में माहू पंखहीन या पंखयुक्त हल्के स्लेटी या हरे रंग के 1.5-3.0 मिमी. लम्बे चुभने एवम चूसने मुखांग वाले छोटे कीट होते है। इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ पौधों के कोमल तनों, पत्तियों, फूलो एवम नई फलियों से रस चूसकर उसे कमजोर एवम छतिग्रस्त तो करते ही है साथ-साथ रस चूसते समय पत्तियोपेर मधुस्राव भी करते है। इस मधुस्राव पर काले कवक का प्रकोप हो जाता है तथा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बाधित हो जाती है। इस कीट का प्रकोप दिसम्बर-जनवरी से लेकर मार्च तक बना रहता है।

जब फसल में कम से कम 10 प्रतिशत पौधें की संख्या चेंपा से ग्रसित हो व 26-28 चेंपा/पौधा हो तब डाइमिथोएट (रोगोर) 30 ई सी या मोनोक्रोटोफास (न्यूवाक्रोन) 36 घुलनशील द्रव्य की 1 लीटर मात्रा को 600-800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर में छिड़काव करना चाहिए। यदि दुबारा से कीट का प्रकोप हो तो 15 दिन के अंतराल से पुनः छिड़काव करना चाहिए।

1  माहू के प्राकृतिक शत्रुओ का संरक्षण करना चाहिए।

2  प्रारम्भ में प्रकोपित शाखाओं को तोडकर भूमि में गाड़ देना चाहिए।

3  माहू से फसल को बचाने के लिए कीट नाशी डाईमेथोएट 30 ई . सी .1 लीटर या मिथाइल ओ डेमेटान 25 ई. सी.1 लीटर या फेंटोथिओन 50 ई . सी .1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर 700-800 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव सायंकाल करना चाहिए।

आरा मक्खीः

इस कीट की रोकथाम हेतु मेलाथियान 50 ई.सी. मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर में छिड़काव करना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर दुबारा छिड़काव करना चाहिए।

पेन्टेड बग या चितकबरा कीटः

इस कीट की रोकथाम हेतु 20-25 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 1.5 प्रतिशत क्यूनालफास चूर्ण का भुरकाव करें। उग्र प्रकोप के समय मेलाथियान 50 ई.सी. की 500 मि.ली. मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें।

सफेद रतुवा या श्वेत किट्टः

फसल के रोग के लक्षण दिखाई देने पर मैन्कोजेब (डाइथेन एम-45) या रिडोमिल एम.जेड. 72 डब्लू.पी. फफूँदनाशी के 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव 15-15 दिन के अन्तर पर करने के सफेद रतुआ से बचाया जा सकता है।

काला धब्बा या पर्ण चित्तीः

इस रोग की रोकथाम हेतु आईप्रोडियॉन (रोवरॉल), मेन्कोजेब (डाइथेन एम-45) फफूंदनाशी के 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव रोग के लक्षण दिखाई देने पर 15-15 दिन के से अधिकतम तीन छिड़काव करें।

चूर्णिल आसिताः

चूर्णिल आसिता रोग की रोकथाम हेतु घुलनशील सल्फर (0.2 प्रतिशत) या डिनोकाप (0.1 प्रतिशत) की वांछित मात्रा का घोल बनाकर रोग के लक्षण दिखाई देने पर छिड़काव करें। आवश्यकता होने पर 15 दिन बाद पुनः छिड़काव करें।

तना लगनः

कार्बेन्डाजिम (0.1 प्रतिशत) फफूंदीनाशक का छिड़काव दो बार फूल आने के समय 20 दिन के अन्तराल (बुआई के 50वें व 70वें दिन पर) पर करने से रोग का बचाव किया जा सकता है।

सरसों की फसल की कटाई और गहाई

सरसों की फसल में जब 75% फलियाँ सुनहरे रंग की हो जाए, तब फसल को काटकर, सुखाकर या मड़ाई करके बीज अलग कर लेना चाहिए।  फसल अधिक पकने पर फलियों के चटकने की आशंका बढ़ जाती है। इसीलिए पौधों के पीले पड़ने और फलियाँ भूरी होने पर फसल की कटाई कर लेनी चाहिए। लाटे को सूखाकर थैसर या डंडों से पीटकर दाने को अलग कर लिया जाता है। सरसों के बीज को अच्छी तरह सुखाकर ही भण्डारण करना चाहिए।

निष्कर्ष

सरसों की खेती भारत में तेल वाली फसलों के उत्पादन में की जाती है organic-mustard-farming-in-India, यह रवि की प्रमुख फसल है इसकी संचित अवस्था में खेती की जा सकती है इसकी वैज्ञानिक खेती कीट प्रबंधन भूमि की तैयारी सहित सभी विषयों पर प्रकाश डाला गया है इस विषय पर लेख लिखा गया है आशा है आपको पसंद आया होगा इसको लाइक करके आप हमारा मनोबल बढ़ाएं एवं शेयर करके दूसरे किसानों को भी फायदा पहुंचाने का कष्ट करें सरसों की खेती से संबंधित अगर आपको कोई जानकारी चाहिए तो कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें


 

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