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 मसूर की खेती  (Lentil farming)

पूरे विश्व में भारत को मसूर की खेती के लिए दूसरा स्थान प्राप्त है| भारत के मध्य प्रदेश राज्य में तकरीबन 5.85 लाख हेक्टेयर के क्षेत्र में मसूर की बुवाई की जाती है, जो की 39.56 प्रतिशत है| जिस वजह से यह राज्य सबसे अधिक मसूर उत्पादन वाला क्षेत्र है| इसके अलावा उत्तर प्रदेश में 34.36 फीसदी व् बिहार में 12.40 प्रतिशत तक उत्पादन होता है| महाराष्ट्र में प्रति हेक्टेयर 410 KG मसूर का उत्पादन किया जाता है| Organic lentil farming in Hindi जिस वजह से यह व्यावसायिक स्तर पर अधिक मुनाफा देने वाली फसल है|

Organic lentil farming in Hindi,Google photo

 मसूर के उपयोग (Uses of lentils)

एक कप मसूर दाल में लगभग २३० कैलोरी होती है और १५ ग्राम के करीब डाइटरी फाइबर, साथ में १७ ग्राम प्रोटीन होता है. आयरन और प्रोटीन से परिपूर्ण यह दाल शाकाहारियों के लिए बहुत ही उपयुक्त है.

मसूर खून को बढ़ाके शारीरिक कमजोरी दूर करती है, स्पर्म क्वालिटी को दुरुश्त रखती है. पीठ व कमर दर्द में इससे आराम मिलता है. मसूर दाल में मौजूद फोलिक एसिड त्वचा रोगों, जैसे चेहरे के दाग, आंखों में सूजन आदि के लिए रामबाण है।यही कारण है कि मसूर की मांग और मूल्य हमेशा ज्यादा रहती है. मसूर कि खेती से किसान ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं

मसूर की किस्में varieties of lentils

राज्यवार मसूर की अनुशंसित किस्में :

पश्चिम बंगाल में मसूर की किस्म

किस्में- WBL-58 WBL-81

बिहार में मसूर की किस्म

किस्में- पंत एल 406, पीएल 639, मल्लिका (के -75), एनडीएल 2, डब्ल्यूबीएल 58, एचयूएल 57, डब्ल्यूबीएल 77, अरुण (पीएल 777-12)

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मसूर की किस्म

किस्में- मलाइका (K-75), IPL-81 (नूरी), JL-3, IPL-406, L-4076, IPL316, DPL 62 (शेरी)

गुजरात में मसूर की किस्म

किस्में- मलाइका (K-75), IPL-81 (नूरी), L-4076, JL-3

हरियाणा में मसूर की किस्म

किस्में- पंत एल-4, डीपीएल-15 (प्रिया), सपना, एल-4147, डीपीएल-62 (शेरी), पंत एल-406, पंत एल-639.

पंजाब में मसूर की किस्म

किस्में- PL-639, LL-147, LH-84-8, L-4147, IPL-406, LL-931, PL 7

राजस्थान में मसूर की किस्म

किस्में- पंत एल-8 (पीएल-063), डीपीएल-62 (शेरी), आईपीएल 406 (अंगूरी)

उत्तराखंड में मसूर की किस्म

किस्में- वीएल-103, पीएल-5, वीएल-507, पीएल-6, वीएल-129, वीएल-514, वीएल-133

जम्मू और कश्मीर में मसूर की किस्म

किस्में- वीएल 507, एचयूएल 57, पंत एल 639, वीएल 125, वीएल 125, पंत एल

मसूर की खेती के लिए उचित मिट्टी चयन (Proper soil selection for lentil cultivation)

मसूर की खेती के लिए उचित माटी का चयन महत्वपूर्ण है। मसूर एक पर्याप्त मात्रा में पानी और अच्छी ड्रेनेज के साथ उगाई जा सकती है। इसके लिए लोमड़ीदार मिट्टी जैसी माटी अच्छी मानी जाती है, जिसमें पानी अच्छी तरह से संचयित हो सकता है। यह माटी मसूर की जड़ों को मात्राएं और पोषक तत्वों को सही मात्रा में प्रदान करती है।

खेती की तैयारी (Preparation for farming)

मसूर की खेती की Organic lentil farming in Hindi शुरुआती तैयारी महत्वपूर्ण है। इसके लिए सबसे पहले खेत की अच्छी तरह से सफाई करें और खरपतवार और बारिश के पानी को अच्छी तरह से निकालें। खेत को अच्छी तरह से खुरचाकर धोएं और खेत के चारों ओर विभाजन निर्माण करें। इसके बाद, खेत में उर्वरक की आवश्यकता हो सकती है, इसलिए आपको विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। इसके बाद, खेत को खेती के लिए तैयार करने के लिए पुरानी मिट्टी को मिश्रण में मिलाएं और उर्वरक का उपयोग करें।

मसूर बोने का समय (Lentil sowing time)

दलहन की बोआई के लिए वैसे तो असिंचित क्षेत्र में 15 से 31 अक्टूबर के बीच का समय उपयुक्त माना गया है। किन्तु सिंचित इलाकों में इसकी बोआई का समय 15 नवम्बर तक निर्धारित किया गया है। मसूर की उन्नत प्रजातियां को 15 अक्टूबर से 25 नवम्बर के बीज बुवाई कर देनी चाहिए।

बीज की मात्रा एवं बोने की बिधि (Seed quantity and sowing method)

छोट दानो वाले प्रभेदो के लिए एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में बुबाई के लिए 35-40 किलोग्राम बीच की जरूरत पड़ती है। जबकी बड़ेे दानों वालेे किस्मों के लिए 50-55 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बुबाई के समय किस्मों के आधार पर कतार से कतार एवं पौधे से पौधे की दूरी क्रमशः 25 से0मी0 ग् 10 से0मी रखनी चाहिए।

बीजोपचार (Seed treatment)

प्रारम्भिक अवस्था के रोगों से बचाने के लिए बुवाई से पहले मसूर के बीजों को सही उपचार करना जरूरी होता है। इसके लिए ट्राइकोडर्मा विरीडी 5 ग्राम प्रति किलों बीज या कार्बेन्डाजिन 2.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। बीजोपचार में सबसे पहले कवकनाशी तत्पश्चात् कीटनाशी एवं सबसे बाद में राजोबियम कल्चर से उपचारित करने का क्रम अनिवार्य होता है।

उर्वरकों का प्रयोग (use of fertilizers)

मिट्टी परीक्षण के आधार पर ही उर्वरकों का प्रयोग आवश्यतानुसार करना चाहिए। सामान्य परिस्थिति में 20 किलो नेत्रजन, 40 किलोग्राम स्फूर एवं 20 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टेयर उपयोग करना चाहिए। प्रायः असिंचित क्षेत्रों में स्फूर की उपलब्धता घट जाती है। इसके लिए पी एस बी का भी प्रयोग कर सकते है। 4 किलो पी एस बी (जैविक उर्वरक) को 50 किलोग्राम कम्पोस्ट में मिलाकर खेतों मंे बुवाई पूर्व व्यवहार करें। जिन क्षेत्रों में जिंक एवं बोरान की कमी पाई जाती है उन खेतों में 25-30 किलोग्राम जिंक सल्फेट एवं 10 किलोग्राम बोरेक्स पाउडर प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के समय प्रयोग करना चाहिए।

मसूर के पौधों की सिंचाई (Lentil Plants Irrigation)

मसूर के पौधों में सूखा सहने की शक्ति होती है| इसलिए इन्हे अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती है| सिंचित जगह पर की गयी फसल के लिए 1 से 2 सिंचाई ही करनी होती है| इसकी पहली सिंचाई शाखा निकलने के पश्चात् बीज रोपाई के 40 से 45 दिन बाद की जाती है, तथा दूसरी सिंचाई फलियों में दाना आने के दौरान बुवाई से तक़रीबन 70 से 75 दिन बाद की जाती है| इस दौरान खेत में पानी का विशेष ध्यान रखे, कि पानी खेत में एकत्रित न हो सके| सिंचाई के लिए स्प्रिंकल विधि का इस्तेमाल करे| इसके अलावा धारिया बना कर भी सिंचाई कर सकते है| इसके पौधों को अधिक पानी बिल्कुल न दे, तथा खेत में जल निकासी अवश्य होनी चाहिए|

मसूर के रोग (Diseases of lentils)

मसूर की खेती में Organic lentil farming in Hindi कई प्रकार के रोग हो सकते हैं, जो पौधों के स्वस्थ विकास को प्रभावित कर सकते हैं। यहां कुछ प्रमुख मसूर के रोगों के बारे में जानकारी है:

पातली पट्टी रोग: 

इस रोग में पौधों की पत्तियों पर पीले या सफेद दाग दिखाई देते हैं। इसके कारण पौधे की विकास रुक जाता है। इस रोग का प्रबंधन करने के लिए अनुकरणीय रोगनाशक का उपयोग करें और संक्रमित पौधे को तुरंत नष्ट करें।

फूला दर रोग: 

इस रोग में पौधे के फूल में सफेद रंग की दाग दिखाई देते हैं। यह रोग फूल के खराब हो जाने के कारण होता है। इसका प्रबंधन करने के लिए अच्छी क्षमता वाले बीजों का चयन करें और फूल के खराब होने वाले पौधों को हटा दें।

दाग रोग:

 इस रोग में पौधों की पत्तियों पर सफेद दाग दिखाई देते हैं और इसके कारण पत्तियाँ सूखने लगती हैं। रोग के प्रसार को रोकने के लिए रोगनाशक का उपयोग करें और संक्रमित पौधे को नष्ट करें।

पानीय पत्तियों का रोग:

 इस रोग में पौधों की पत्तियों पर नीले या सफेद दाग दिखाई देते हैं। इसे नियंत्रित करने के लिए सुरक्षा के लिए रोगनाशक का उपयोग करें और संक्रमित पौधे को हटा दें।

मसूर के फसल की कटाई और पैदावार (Lentil Harvest and Profit)

मसूर के पौधे बीज रोपाई के 110 से 140 दिन पश्चात् पैदावार देना आरम्भ कर देते है| इसकी Organic lentil farming in Hindiफसल की तुड़ाई फ़रवरी से मार्च माह के मध्य की जाती है| जब इसके पौधों पर लगे फूल पीले और फलिया भूरे रंग की हो जाये उस दौरान पौधों की कटाई कर ले| मसूर की उन्नत किस्में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 20 से 25 क्विंटल का उत्पादन दे देती है, तथा 30 से 35 क्विंटल तक भूसा प्राप्त हो जाता है|

निष्कर्ष Conclusion

मसूर एक दलहन बरगी फसल है भारत इसका प्रमुख उत्पादक देश है जिसकी उन्नत खेती के विषय में आपको जानकारी दी गई इसके उपयोग की किस्म जमीन की तैयारी बुवाई सिंचाई कीट प्रबंधन बोने की बिधि समय बीज उपचार उर्वरक का प्रयोग सभी जानकारी इस लेख में दी गई हैं किसानों के लिए यह जानकारी उपयोगी है यह लेख आपको कैसा लगा कमेंट बॉक्स में बताएं एवं दूसरे किसानों को लाभ मिल सके इसलिए आप सोशल मीडिया पर इसको शेयर करें एवं लाइक करें


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