organic-gram-seed-farming-in-Hindi/chana-ki-jaivik-kheti
organic gram seed farming in Hindi
चना की खेती Introduction
चने को आमतौर पर छोलिया या बंगाल ग्राम भी कहा जाता है, जो कि भारत की एक महत्तवपूर्ण दालों वाली फसल है।organic-gram-seed-farming-in-Hindi यह मनुष्यों के खाने के लिए और पशुओं के चारे के तौर पर प्रयोग किया जाता है। चने सब्जी बनाने के काम आते हैं जबकि पौधे का बाकी बचा हिस्सा पशुओं के चारे के तौर पर प्रयोग किया जाता है।चने की पैदावार वाले मुख्य देश भारत, पाकिस्तान, इथियोपिया, बर्मा और टर्की आदि हैं। इसकी पैदावार पूरे विश्व में से भारत में सबसे ज्यादा हैं और इसके बाद पाकिस्तान है। भारत में मध्य प्रदेश, राज्यस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र और पंजाब आदि मुख्य चने उत्पादक राज्य हैं। इन्हे आकार, रंग और रूप के अनुसार 2 श्रेणियों में बांटा गया है: 1) देसी या भूरे चने, 2) काबुली या सफेद चने। काबुली चने की पैदावार देसी चनों
Google photoचना की खेती ज़मीन की तैयारी Soil managment
चने की फसल के लिए ज्यादा समतल बैडों की जरूरत नहीं होती। यदि इसे मिक्स फसल के तौर पर उगाया जाये तो खेत की अच्छी तरह से जोताई होनी चाहिए। यदि इस फसल को खरीफ की फसल के तौर पर बीजना हो, तो खेत की मॉनसून आने पर गहरी जोताई करें, जो बारिश के पानी को संभालने में मदद करेगा। बिजाई से पहले खेत की एक बार जोताई करें। यदि मिट्टी में नमी की कमी नज़र आये तो बिजाई से एक सप्ताह पहले सुहागा फेरें।
चना की खेती बिजाई का समय sowing
बारानी हालातों के लिए 10 अक्तूबर से 25 अक्तूबर तक पूरी बिजाई करें। सिंचित हालातों के लिए 25 अक्तूबर से 10 नवंबर तक देसी और काबुली चने की किस्मों की बिजाई करें।organic-gram-seed-farming-in-Hindi सही समय पर बिजाई करनी जरूरी है क्योंकि अगेती बिजाई से अनआवश्यक विकास का खतरा बढ़ जाता है। पिछेती बिजाई से पौधों में सूखा रोग का खतरा बढ़ जाता है, पौधे का विकास घटिया और जड़ें भी उचित ढंग से नहीं बढ़ती।
राज्यवार प्रमुख प्रजातियों का विवरण राज्य
प्रजातियां Varieties
देशी काबुली
आंध्रप्रदेश
फूले जी. 95311, आई.सी.सी.वी. 32 क्रांति,एम.एन.के. 1
आई सी.सी.वी. 2,कॉक-2
बिहार के.पी आई.सी.सी.वी. 37 फूले जी. 0517
मध्यप्रदेश
जे.जी. 14, जे.जी. 226, जे.जी. 63 जे.जी.के. 3, जे.जी.के1, जेजी. 13, जे.जी. 11 कॉकर
राज विजय 202 एवं 201, जे.जी. जे.जी. 130, जे.जी. 322, जे.जी. 218, के2
महाराष्ट्र
ए.के.जी. 9303-12, जाकी 9218, बी.डी. , उज्जवल डब्लू.सी.जी. 10, जे.जी. 16 पी.के.वी. काबुली 4, विराट, एन.जी. 797 (आकाश), दिग्विजय,फूले जी. 0517
पंजाब
जी.एन.जी. 1958, जी.एल.के. 28127, पी.बी.जी. 5,पूसा 547, जी.एन.जी. 469, उदय, पूसा 362,राजस।
एल. 551, एल. 550
राजस्थान
आर.एस.जी. 974, आर.एस.जी. 902 (अरूणा), आर.एस.जी. 896 (अर्पण), आर.एस.जी. 991 (अर्पणा), आर.एस.जी. 807 (आभा), जी.एन.जी. 1488,जी. एन.जी. 421, प्रताप चना 1, आर.एस.जी.902 (अरूणा)
एल. 550.कॉक 2
उत्तरप्रदेश
जी.एन.जी. 1969, सी.एस.जे. 515, डब्लू.सी.जी. 3 (वल्लभ कलर चना), जी एन.जी. 1581, बी.डी.जी. 72,
पूसा 1003, कॉक 2, के 4,हरियाणाा काबुली चना 2
उत्तराखंड आर.एस.जी. 963 (आधार), सी.एस.जी. 8962, पंत काबुली 1 फुले जी 9925-9 (राजस)
झारखंड के.डब्लू.आर. 108, के.पी.जी. 59, पंत जी. 114 एच. के. 05-169
छत्तीसगढ़
पूसा 391, पूसा 372, जे.एस.सी. 55,
जे.जी.के. 1, जे.एस.सी. 56, आर.जी. 2918 (वैभव)
फूले जी. 0517
पश्चिम बंगाल
अनुराधा, गुजरात चना 4, उदय,
पूसा 1003
तमिलनाडू
एम.एन.के. 1, फुले जी. 95311,जे.जी.11 को. 4
स्त्रोत:- सीडनेट, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय , भारत सरकार एवं भा.द.अनु.सं.-भा.कृ.अनु.प., कानपुर।
गौण एवं सूक्ष्म पोषक तत्व
बुआई की विधि Sowing
अधिक उपज लेने हेतु बोआई कतारों में ही 30 से.मी. की दूरी पर व देर से 25 से.मी. की दूरी पर सीड ड्रिल द्वारा या हल के पीछे चोंगा बांधकर 8-10 से.मी. की गहराई पर करें
चने की खेती में फॉस्फेट घोलक जीवाणुओं का इस्तेमाल
तमाम फसलों की तरह चने की बुआई से पहले मिट्टी में मौजूद फॉस्फोरस की प्राकृतिक तरीके से फसल को ज़्यादा से ज़्यादा सप्लाई देने के लिए फॉस्फेट घोलक जीवाणुओं यानी PSB (Phosphate solubilising bacteria) कल्चर का इस्तेमाल भी अवश्य करना चाहिए। organic-gram-seed-farming-in-Hindi ये भी मिट्टी में जैविक खाद डालने का ही तरीका है। इसमें PSB को मिट्टी में मिलाकर ज़मीन को उपजाऊ बनाया जाता है। एक एकड़ में PSB का इस्तेमाल करने के लिए खेत की 50 से 100 किलोग्राम तक मिट्टी लेकर इसमें PSB की करीब 200 से 250 मिलीलीटर मात्रा को अच्छी तरह से मिलाना चाहिए। फिर कुछ देर छाया में सुखाने के बाद इस मिट्टी को पूरे खेत में बराबर से छिड़क देना चाहिए। PSB का इस्तेमाल सिंचाई के पानी के ज़रिये भी किया जा सकता है।
चने की खेती में अन्तरवतीय फसल प्रणाली crop rotation
चने की खेती अन्तरवर्तीय के रूप में निम्न फसलों के साथ करने से अधिक उत्पादन के परिणाम प्राप्त हुए हैं।
6 लाईन चना 4 लाईन गेहूं ------ 6 लाईन चना 2 लाईन सरसों
4 लाईन चना 2 लाईन जौ --------4 लाईन चना 2 लाईन अलसी
प्रयोग द्वारा चना गेहूं फसल प्रणाली सबसे अधिक लाभकारी सिद्ध हुआ है।
चने की जैविक फसल में खरपतवार रोकथाम weed management
चने की जैविक खेती के लिए फसल की प्रारंभिक अवस्था में दो बार निराई-गुड़ाई अवश्य करनी चाहिए, जिससे कि खरपतवारों पर नियंत्रण पाया जा सके|
चने की खेती में सिंचाई Irrigation
सिंचित हालातों में बिजाई से पहले एक बार पानी दें। organic-gram-seed-farming-in-Hindiइससे बीज अच्छे ढंग से अंकुरित होते हैं और फसल की वृद्धि भी अच्छी होती है। दूसरी बार पानी फूल आने से पहले और तीसरा पानी फलियों के विकास के समय डालें। अगेती वर्षा होने पर सिंचाई देरी से और आवश्यकतानुसार करें। अनआवश्यक पानी देने से फसल का विकास और पैदावार कम हो जाती है। यह फसल पानी के ज्यादा खड़े रहने को सहन नहीं कर सकती, इसके लिए अच्छे निकास का भी प्रबंध करें।
चने की खेती में सहफसली खेती से कीट नियंत्रण biological pest control
चने के साथ अलसी, सरसों अथवा धनिया की सहफसली खेती करने से भी फलीबेधक कीटों की रोकथाम में मदद मिलती है। इसके अलावा खेत के चारों ओर गेंदे के फूलों को ट्रैप क्रॉप (Trap Crop) के रूप में लगाने से भी फ़ायदा होता है। खेत में बर्ड पर्चर (Bird percher) यानी चिड़ियों के बैठने का मचान बनाना भी उपयोगी होता है क्योंकि चिड़ियाँ इन पर बैठकर सुंडियों को चाव से खाती हैं।
चने की जैविक फसल में कीट रोकथाम
चना फली भेदक
लक्षण- सूड़ी के लक्षण फली में छेद करके अपना मुंह अंदर घुसाकर सारा का सारा दाना चट कर जाती है|
रोकथाम-
प्रपंच- “प्रकाश प्रपंच’ लगावें, यौन आकर्षण जाल (सेक्स फेरोमोन ट्रेप) (10 से 12 प्रति हेक्टेयर) के मान से लगावें| जब नर कीटों की संख्या प्रति रात्रि प्रति ट्रेप 4 से 5 तक पहुँचने लगे तो कीट नियंत्रण जरूरी है|
चने की कटाई, मड़ाई Harvest
चने की फसल पकने के वक़्त इसकी पत्तियाँ हल्की पीली या भूरी होकर झड़ने लगती हैं। इस वक़्त यदि फली से चने का दाना निकालकर उसे दाँत से काटा जाए और कट्ट की आवाज़ आए, तब समझना चाहिए कि उपज कटाई के लिए तैयार है। कटाई के बाद फलियों से चना हासिल करने के लिए थ्रेशर से या फिर बैलों या ट्रैक्टर से मड़ाई करें। टूटे-फूटे या सिकुड़े या रोगग्रस्त दानों को पंखों या प्राकृतिक हवा की बदौलत भूसे से अलग कर लें। भंडारण से पहले चने के दानों को अच्छी तरह सूखा लेना चाहिए। दानों में यदि 10-12 प्रतिशत भी नमी रहती है तो उन पर घुन लगने का ख़तरा बहुत ज़्यादा होता है।
चने की खेती भंडारण Preservative
सूखे चने को साफ़-सुथरे और नमी रहित भंडारण गृह में जूट की बोरियों या लोहे के ड्रमों में चने को भरकर रखना चाहिए। जूट की बोरियों को भी उपचारित करके इस्तेमाल करना भी बहुत फ़ायदेमन्द साबित होता है। इसके लिए भंडारण से पहले 10 किलो नीम की पत्तियों को 100 लीटर पानी में उबलकर बनाये गये अर्क में जूट की बोरियों को भिगोने और सुखाने के बाद इस्तेमाल करना चाहिए। चने के साबुत दानों की तुलना में उससे दाल बनाकर भंडारण करने पर घुन से होने वाले नुकसान की रोकथाम हो जाती है।
यदि उपरोक्त जानकारी से हमारे प्रिय पाठक संतुष्ट है, तो लेख organic-gram-seed-farming-in-Hindi को अपने Social Media पर Like व Share जरुर करें और अन्य अच्छी जानकारियों के लिए आप हमारे साथ Social Media द्वारा Facebook Page को Like, Twitter व Google+ को Follow को Subscribe कर के जुड़ सकते है|
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें